शब्द शक्ति

शब्द शक्ति

शब्दों में आन्तरिक तौर पर छुपी ताकत को शब्दशक्ति कहते हैं। अर्थ का बोध कराने में शब्द कारण है और उस अर्थ का बोध कराने वाले व्यापार को शब्द शक्ति कहते हैं।

शब्दशक्तियों के तीन प्रकार हैं:-

  1. अभिधा
  2. लक्षणा
  3. व्यंजना

1. अभिधा:- अभिधा शब्द की वह शक्ति है जो शब्द के साधारण और व्यवहारिक अर्थ को प्रकट करती है अर्थात- दिये गए अर्थ को ज्यों का त्यों प्रकट करे उसे अभिधा कहते हैं। जैसे:-

  • माँ ने खाना बनाया।
  • लड़की गाना गाती है।
  • दिवस का अवसान समीप था,

गगन था कुछ लोहित हो चला

तरू शिखा पर थी अब राजती,

कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा।

इससे तीन प्रकार के शब्दों का अर्थ बोध होता है:-

    (क) रूढ़:- उन शब्दों का अर्थ बोध समुदाय शक्ति या जातिवाचक शक्ति से होता है। जैसे:- घोड़ा, जल आदि।

    (ख) यौगिक:- इन शब्दों का अर्थ बोध अवयवों की शक्ति से होता है। जैसे:- दिवाकर, सुधांशु।

    (ग) योगरूढ़:- इन शब्दों का अर्थ समुदाय और अवयवों की शक्ति के सहयोग से होता है। ये शब्द यौगिक होते हुए भी रूढ़ होते हैं।

 

2. लक्षणा:- मुख्य अर्थ के बाधित होने पर रूढ़ि अथवा प्रयोजन के कारण जिस क्रिया या शक्ति से मुख्य अर्थ से संबंध रखने वाले अन्य अर्थ लक्षित हो उसे लक्षणा शक्ति कहते हैं।

  • यह लड़की गाय है।

गाय-सीधी स्वभाव वाली

  • तुम देवी हो।

देवी- सर्व गुण सम्पन्न

  • शिवाजी शेर है।

शेर- ताकतवर

 

मुहावरें एवं लोकोक्तियाँ इसके उदाहरण हैं।

लक्षण में किसी शब्द का साधारण या व्यवहारिक अर्थ नहीं लगाया जाता, उसका अन्य लक्षित अर्थ ढूँढा जाता है। इसके दो भेद हैं- रूढ़ा लक्षणा, प्रयोजनवती लक्षणा

 

3. व्यंजना:- जो शब्द अपने छुपे हुए अर्थ को प्रकट करे उसे व्यंजना शब्दशक्ति कहते हैं। शब्द के जिस व्यापार से मुख्य और लक्ष्य अर्थ से भिन्न अर्थ की प्रतीति हो। अभिधा और लक्षणा अपने अर्थ का बोध कराकर जब अलग हो जाती है तब जिस शब्द शक्ति द्वारा व्यंग्यार्थ का बोध होता है उसे व्यंजना शक्ति कहते हैं। जैसे:-

  • तारे निकल आए।
  • बादल घिर आए।
  • मुर्गे ने बाँग दी।
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